हिंदी दिवस ..
बड़े दिन हो गए कुछ हिंदी में लिखे हुए , सोचा आज कुछ हिंदी में लिखा जाय , यार ऐसा की अपन कोई बड़े साहित्य की रचना तो कर नहीं रहे है, एक छोटा सा ८०० शब्दों का ब्लॉग ही तो लिखते है तो फिर क्या फर्क पड़ता है ..?
क्या हिंदी और क्या गुजराती..!!
लेकिन यारो एक बात बताऊ ..?!!
भाषा के मामले में अपन को माँ सरस्वती का वरदान है…!
राजस्थानी के साथ राजस्थानी , दिल्लीवालो के साथ दिल्ली की , बम्बई के साथ बम्बैया .. बड़ा मज़ा आता है अलग अलग लेहजे में बात करने का..!
मेरी हिंदी के साथ में बचपन से काफी दोस्ती रही है , और उसकी बहोत बड़ी वजह थी हिन्दीभाषी दोस्तों के साथ मेरी दोस्ती ..!
मेरे हिंदीभाषी दोस्तों के साथ में हिंदीमें बात करते करते और फिर स्कुल में लिखते वक्त धीरे धीरे एक ऐसा वक्त आया की मेरा सोचना भी हिंदी में बाय डिफ़ॉल्ट
होने लग गया था.. और फिर एक फ्लो सेट
हो गया..!!
कोई भी भाषा के ऊपर पक्कड तभी आती है जब हम उसी भाषा में सोच के बोले या लिखे..!
लेकिन एक बात बताऊ यारो…
हम गुजराती लोगो की एक बहोत बड़ी खासियत है ,अगर हमें पता चलता है की अगला नॉन-गुजराती है तो उसको कम्फर्ट
प्रदान करने के लिए हम लोग है ना उनके साथ में बात करते वक्त टूटीफूटी तो टूटीफूटी, या फिर पूरा वाक्य गुजराती में बोलने के बाद में पीछे सिर्फ “है” लगा देते है..लेकिन बोलेंगे तो हिंदी में ही..!!
फिर भले ही क्यों न वो बंदा गुजराती अच्छी तरह से समज रहा हो ..!! लेकिन हम तो बोलेंगे हिन्दी मे ही..!!
याद करो मेरे गुजजू भाइओ और बहनों कभी होटल में जा के वेटर को गुजराती में ऑर्डर किये है का ..??
वैसे हम गुजरातीओ का सबको कम्फर्ट लेवल देने के पीछे भी एक कारण है .. हमारे गुजरातीओ के खून में धंधा है ,और धंधे का पहला उसूल है अगले को कम्फर्ट फिल करवा दो ..अगला अगर आप के साथ जरा सा भी कम्फर्ट फिल कर रहा है ना तो धंधे के लिए आप हाफ मार्क
तक पहुच ही गए समजो..!!
वैसे हर भाषा को बोलने में वो भाषा जहा बोली जाती है उस जगह का बड़ा प्रभाव रहता है , एक अलग लेहजा रहता है , उसी लेहजे में भाषा बोली जाय तो उसकी मज़ा भी अलग होती है..
उदाहरण के तौर पर जैसे छत्रपति विमान पतन स्थल उर्फ़ सान्ताक्रुज़ एरपोर्ट पर उतरके अगर टेक्षी पकड ली तो बोलने का भाऊ कैसा रे ..सब ठीक ? चला ताडदेव लेलो ..सी लिंक से ..बारिश जाली
की नहीं भाऊ.. बहोत गर्मी है रे.. वाट लगा रही है.. पसीना पसीना निकल रहा है ..!!
अब यही बात इंदिरा गाँधी विमान पतन स्थल से उतरके .. भाईसाब कैसी है दिल्ली ? अरे यार धुप ने तो बेहाल करके छोड़ा है, पसीने पसीने छुट रहे है एक काम करो भाई नोईडे
ले चलो और भाई सुनो बाहर बाहर से ही लिजीयो
, एक बार दिल्ली के अंदर घुस लिए
तो फिर ट्राफीक में भगवान् ही मालिक है..!
और दिल्ली से आगे निकल लिए तो तो फिर ..ओये के
बात ..!!
मै काफी हद तक बोलने में लेहजा पकड लेता हु ..
लेकिन एकबार एक गजब वाकिया हुआ था मेरे साथ में इसी लेहजे के चक्कर में ..
एक दिन बहोत ही सुबह सुबह समजो की भोर होने से पहले पहले ही मै दिल्ली से बद्दी जाने के लिए टेक्सी लेके निकला ..ड्राइवरजी को बोला भाईसाब अम्बाले से जीरकपुर होके पहाड़ो में ले लियो , तब तक तो सीधा ही रास्ता पकडे रखियो..
अब ड्राइवर बोला..आप इत्मिनान से पिच्छे जा के सो जाओ सरजी..
और हम तो लेट लिए , अचानक तिन चार घंटे बाद गाड़ी एकदम से उबड़ खाबड़ रास्ते पर आ गई और मै पीछे की सिट पे पड़े पड़े उछल ने लगा ..
एकदम से मै उठ गया और खिड़की से बाहर देखा .. चारो तरफ सरसों के खेत लहरा रहे है , कोई भी बंदा आजुबाजू नजर नहीं आ रहा था.. एक छोटे से रस्ते पे मेरी गाडी आ गई थी..मैंने थोड़ी गभराहट से पूछा भाई ये कहा ले आये ? हाइवे क्यों छोड़ा ?
ड्राइवर बोला ..सर जी शोर्ट कट के चक्कर में फस गया हु और नेटवर्क है नहीं गूगल जवाब नहीं दे रहा है..मन में तो मैंने अच्छे से गालिया दी ड्राइवर को ..
उतने में मैंने खिड़की से बाहर थोड़े दूर एक लौंडे को खड़े देखा..
मैंने बोला ओये रुको यार मै इससे पूछता हु.. गाडी को ब्रेक लगी
मैने लड़के को आवाज दी इधर आओ..
अब लौंडा बदमाश.. बोले.. तू निच्चे उतर के आ तणे काम है ..
मै समज गया हरियाणा है .. मै गाडी से उतरके उसके पास गया और थोडा हरियाणवी लेहजे में बोला भाई जीरकपुर किधर पड़ेगा ..
बन्दा धडाधड हरियाणवी में रास्ता बोल गया .. मैंने बोला हिंदी ..हिंदी में बोलो..
बंदे ने मेरे को अच्छे से गाली दी और बोला इत्ती अच्छी हरियाणवी बोले और हिंदी में बुलवायेगा .. और दो गाली देके भाग गया..!!
मै तो सर पे हाथ रख के चारो तरफ देखू .. जहा नजर पड़े वहा खेत ही खेत .. एक भी बंदा न दिखे..हरियाणवी लेहजे में बोलने के चक्कर में लग गई अपनी तो..!
मैंने ड्राइवर को पूछा आपको कुछ समज आया .. वो बोला सर मै तो गोरखपुर से हु इनकी ज़बान तो हमारे पल्ले नहीं पड़ती जी..!!
उस दिन फिर कम से कम पचास किलोमीटर का चक्कर काटे ,और फिर गाँठ बांध ली कुछ भी हो जाय, न पंजाबी लेहजा न हरियाणवी .. बस अब दिल्ली वाली हिंदी ही बोलेंगे … चलियो ,जाइयो ,कहियो …वाली..!!
एसा भी होता है भाई .. कभी कभी जिंदगी में ..
ज्यादा हुशियारी दिखाओगे तो लगणि तय है ..!!
चलो कोई नहीं ,कुछ तो सीखे ..!! और क्या ..!!
कभी रास्थान की भी बाते करंगे.. खम्मा घणी सा वाली .. अपणे पास तो खजानों है
सा..!!
कश्मीर से कोलंबो और द्वारिका से थिम्पू तक घुमो है थारो शैशवभाई सा हा..!!
वो भी कम से कम चार बार हा ..!! इक इक पथ्थर को जाणु इस मिटटी के ..!
चल इब सो जा..
इ लाइक के बटन दबाते जईओ ..!!
शुभ रात्रि
शैशव वोरा